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बड़ा खुलासा ! रांची से लेकर दुबई तक के अपराधियों का डिजिटल मुख्यालय बना “जंगी ऐप”

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SPECIAL DESK, NATION EXPRESS, RANCHI

राजधानी रांटी में पुलिस के साइबर रूम की बड़ी स्क्रीन पर एक नाम बार-बार चमक रहा था—“Jangi App”। यह कोई गेम नहीं था, न सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म। यह था झारखंड के अपराध जगत का डिजिटल हेडक्वार्टर, जहां से जेल में बैठा एक गैंगस्टर पूरी दुनिया फैले अपने गुर्गों को हुक्म दे रहा था। गैंगस्टर सुजीत सिन्हा, जो सालों से जेल में बंद है, बाहर की दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ नहीं था। उसका गैंग दिन-रात एक्टिव था। रंगदारी, हथियार सौदे, धमकी भरे वीडियो और नए टारगेट। यह सब एक एप के जरिए चल रहा था, जिसका नाम था “जंगी ऐप”। इस ऐप में कॉल ट्रेस नहीं होती, चैट ऑटो-डिलीट हो जाती, और डेटा क्लाउड सर्वर पर नहीं रहता। यानी, अपराधियों का एक सुरक्षित डिजिटल ठिकाना।

सुजीत सिन्हा

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जंगी ऐप बना अपराधियों का ‘एन्क्रिप्टेड हब’

पुलिस की जांच में खुलासा हुआ कि जंगी ऐप के जरिए सुजीत सिन्हा और उसकी पत्नी रिया सिन्हा गिरोह से जुड़े हर सदस्य से संपर्क में रहते थे। प्लानिंग से लेकर पैसे की डील तक सब कुछ इस ऐप पर तय होता था। यहीं पर तय होता था कि कौन व्यापारी से रंगदारी मांगेगा, कौन धमकी देगा, और किसके घर के बाहर फायरिंग होगी। पुलिस के एक आला अधिकारी ने बताया कि यह ऐप आम मोबाइल यूजर के फोन में नहीं मिलता। इसे डार्क लिंक से डाउनलोड किया जाता है।

दुबई से कमांड, रांची में वारदात

‘जंगी ऐप’ सिर्फ राज्यों के बॉर्डर तक सीमित नहीं था। इस नेटवर्क की एक और कड़ी दुबई में बैठा कुख्यात अपराधी प्रिंस खान था।
जेल से सुजीत सिन्हा अपने गुर्गों को वीडियो बनवाने का निर्देश देता था, वही वीडियो दुबई भेजा जाता था, और प्रिंस खान उसे झारखंड के कारोबारियों को भेजकर रंगदारी मांगता था। जो रंगदारी देने से इनकार करते, उनके घर गोलियां चलती।

रांची में गिरफ्तार गैंग में शामिल है रिया सिन्हा. (Photo: X/@ranchipolice)

जेल के बाहर से कनेक्शन संभालने वाली कड़ी है रिया सिन्हा

जांच में सामने आया है कि सुजीत की पत्नी रिया सिन्हा ही इस पूरे नेटवर्क की ‘ऑपरेशनल मैनेजर’ थी। वह गिरोह के सदस्यों से संपर्क रखती, पैसों का हिसाब संभालती और हथियार खरीद के सौदे फाइनल करती। 13 अक्टूबर को रिया की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को इस डिजिटल नेटवर्क की झलक मिली।

बंदूक की जगह अब डेटा से खेल रहे अपराधी

झारखंड पुलिस अब इस पूरे केस की जांच साइबर सेल और एटीएस की मदद से कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि ‘जंगी ऐप’ जैसे प्लेटफॉर्म अब अपराध की नई दिशा बनते जा रहे हैं, जहां न कोई सिम कार्ड का रिकॉर्ड रहता है, न चैट ट्रेस होती है। एक अधिकारी ने कहा कि अपराधी अब बंदूक से नहीं, बल्कि डेटा से खेल रहे हैं।

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पाकिस्तान से मंगाये गये थे 21 हथियार

पुलिस को शक है कि इसी ऐप के जरिए पाकिस्तान के हथियार तस्करों से भी संपर्क किया गया था। जांच में सामने आया कि गिरोह ने 21 विदेशी हथियार पाकिस्तान से मंगवाए। उन हथियारों में से अब तक 10 बरामद हुए हैं, जबकि 11 हथियार अभी तक लापता हैं।
पुलिस की कई टीमें इनकी खोज में लगातार काम कर रही हैं।

यूनिक नम्बर उपलब्ध करवाता है जंगी

जंगी एप एक ऐसा ऐप है जो प्ले स्टोर पर उपलब्ध है. इसे कोई भी व्यक्ति फ्री में डाउनलोड सकता है. दरअसल यह एप आपके मोबाइल में 10 डिजिट का एक यूनिक नंबर उपलब्ध करवाता है. जिसके जरिए अपराधी अपने साथियों के साथ बात करते हैं. साइबर एक्सपर्ट बताते हैं कि जंगी एप एक मैसेंजर एप है, जिसका सर्वर ही नहीं होता है. यानी यह सर्वर लेस होता है. इसके द्वारा की गई बातचीत का डाटा सिर्फ यूजर के मोबाइल पर ही स्टोर होता है, इस फीचर की वजह से इसे पूरी तरह से प्राइवेट एप माना जाता है.

बातचीत के बाद अगर मोबाइल से एक बार डेटा डिलीट कर दिया जाए तो फिर उसे रिकवर भी नहीं किया जा सकता है. जानकर बताते हैं कि एप डाउनलोड करने के बाद जब आप इसमें अपना नाम डालेंगे तो आपको एक 10 डिजिट का नंबर एप के द्वारा प्रोवाइड किया जाएगा. जब भी आप इस किसी को इस एप के जरिए कॉल करेंगे तो दूसरे के पास आपका अपना मोबाइल नंबर न जाकर एप का नंबर दूसरे के पास जाएगा. मसलन अगर आपका नंबर 93xxxxxx है और आप जंगी एप के जरिये किसी को कॉल करेंगे तो उसके मोबाइल में 10-4232-2134 जैसे नम्बर से कॉल जाएंगे, दूसरी तरफ के मोबाइल स्क्रीन पर 10-4232-2134 नंबर ही नजर आएगा, इसमे कॉलर का वास्तविक नंबर नहीं दिखेगा. इसी का फायदा शातिर उठा रहे हैं.

जंगी एप का तिलस्म तोड़ने की कागार पर झारखंड पुलिस, कुख्यात अपराधी से लेकर  ड्रग्स तस्कर राडार पर
क्यों खतरनाक है जंगी

किसी भी अपराध की गुत्थी को सुलझाने के लिए पुलिस दो तरीके से काम करती है. पहले मैन्युअल और दूसरा टेक्निकल. अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए और उसके ठिकानों तक पहुंचाने के लिए अपराधी का मोबाइल नेटवर्क पुलिस का सबसे बड़ा मददगार साबित होता रहा है. लेकिन इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव ने अपराधियों तक कुछ ऐसे मोबाइल एप पहुंचा दिए हैं, जिसकी वजह से उन्हें ट्रेस करना काफी मुश्किल हो जाता है. जंगी (ZANGI)भी इसी श्रेणी में आता है. झारखंड के उग्रवादी संगठन, ड्रग्स डीलर और संगठित आपराधिक गिरोह के सदस्य आपस में बातचीत करने के लिए और रंगदारी के कॉल के लिए जंगी एप का प्रयोग कर रहे हैं.

Report By :- PALAK TIWARI, SPECIAL DESK, NATION EXPRESS, RANCHI

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