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शिक्षक दिवस पर बोले INIFD डायरेक्टर महबूब आलम कामयाबी के पीछे शिक्षक का अहम योगदान होता है

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EDUCATION DESK, NATION EXPRESS, RANCHI

शिक्षक दिवस के अवसर पर मेन रोड स्थित INIFD और IICC संस्थान में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किया गया कार्यक्रम में संगीत और कई खेल के आयोजन किए गए संस्थान के छात्राओं ने बढ़ चढ़कर शिक्षक दिवस पर हिस्सा लिया आपको बता दें कि सर्वपल्ली राधा कृष्ण के नाम पर हर साल शिक्षक दिवस पूरे देश में एक साथ मनाया जाता है शिक्षक दिवस के अवसर पर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर महबूब आलम ने विद्यार्थियों को जिंदगी में सफलता पाने के कई टिप्स दिए और उन्हें प्रोत्साहित भी किया कि किस तरह अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जी तोड़ मेहनत जरूरी है !

शिक्षक दिवस के रंगारंग कार्यक्रम में इंस्टिट्यूट की तरफ से सारे शिक्षकों को सम्मानित किया गया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर महबूब आलम ने नेशन एक्सप्रेस से खास बातचीत में कहा की जिंदगी में कामयाब होने के पीछे एक शिक्षक का बहुत अहम योगदान होता है चाहे वह स्कूल हो या कॉलेज हो हर जगह शिक्षक अपने छात्र छात्राओं को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं हमारे इंस्टिट्यूट में भी सभी शिक्षक छात्र और छात्राओं का भविष्य सुधारने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं

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शिक्षक दिवस के कार्यक्रम में इंस्टीट्यूट के आमिर आरिफीन अमृता मिश्रा सुशांत कुमार मनीषा कुमारी अनुष्का और नायला आरती के अलावा कई छात्राएं मौजूद थी, शिक्षक दिवस के अवसर पर संस्थान के डायरेक्टर महबूब आलम शिक्षक दिवस के अवसर पर केक काटकर सभी शिक्षक और छात्राओं को शिक्षक दिवस की ढेर सारी बधाई भी दी !

Teacher’s Day: 58 साल से भारत के इस राष्ट्रपति के जन्मदिन पर मनाया जाता है शिक्षक दिवस

क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस?

भारत में साल 1962 से शिक्षक दिवस मनाया जाता है. इसी साल मई में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने देश के दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर पदभार संभाला था. इससे पहले 1952 से 1962 तक वो देश के पहले उप-राष्ट्रपति रहे थे.

एक बार डॉक्टर राधाकृष्णन के मित्रों ने उनसे गुज़ारिश की कि वो उन्हें उनका जन्मदिवस मनाने की इजाज़त दें. डॉक्टर राधाकृष्णन का मानना था कि देश का भविष्य बच्चों के हाथों में है और उन्हें बेहतर इंसान बनाने में शिक्षकों का बड़ा योगदान है.

उन्होंने अपने मित्रों से कहा कि उन्हें प्रसन्नता होगी अगर उनके जन्मदिन को शिक्षकों को याद करते हुए मनाया जाए. इसके बाद 1962 से हर साल पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है.

शिक्षक दिवस के अवसर पर जानते हैं भारत के पूर्व राष्ट्रपति, दार्शनिक और शिक्षाविद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में. उनके जन्मदिन के अवसर पर हर साल .शिक्षक दिवस मनाया जाता है.

टीचर्स डे: डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जिन्होंने स्टालिन को भी दी थी सीख

5 सितंबर को भारत में लोग अपने शिक्षकों को और अपने जीवन में उनके योगदान को याद करते हैं.

जहां शिक्षकों के सम्मान में विश्व शिक्षक दिवस पांच अक्तूबर को मनाया जाता है, वहीं भारत में ये एक महीने पहले पांच सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति और शिक्षाविद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर मनाया जाता है. डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था.

ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ, प्रिंस फ़िलिप, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णनकौन थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन?

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म मद्रास (मौजूदा चेन्नई) से चालीस किलोमीटर दूर तमिलनाडु में आंध्रप्रदेश से सटी सीमा के नज़दीक तिरुतन्नी में हुआ था. एक मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में जन्मे राधाकृष्णन के पिता श्री वीर सामैय्या उस दौरान तहसीलदार थे.

प्रेसिडेन्ट्स ऑफ़ इंडिया, 1950-2003 में जनक राज जय लिखते हैं कि हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करने वाला ये परिवार मूल रूप से सर्वपल्ली नाम के गांव से था. राधाकृष्णन के दादाजी ने गांव छोड़ कर तिरुतन्नी में बसने का फ़ैसला किया था. आठ साल की उम्र तक राधाकृष्णन तिरुतन्नी में ही रहे जिसके बाद उनके पिता ने उनका दाख़िला क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल में करा दिया. इसके बाद तिरुपति के लूथेरियन मिशनरी हाई स्कूल, फिर वूर्चस कॉलेज वेल्लूर और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी की.

जानिये डॉ. सर्वपल्‍ली राधाकृष्‍णन ने शिक्षक दिवस की शुरुआत कैसे की? | Know how Dr. Sarvepalli Radhakrishnan started Teachers' Day?सोलह साल की उम्र में अपनी दूर की एक रिश्तेदार के साथ उनकी शादी हो गई. बीस साल की उम्र में उन्होंने ‘एथिक्स ऑफ़ वेदान्त’ पर अपनी थीसिस लिखी जो साल 1908 में प्रकाशित हुई थी.

बेहद कम उम्र में राधाकृष्णन ने पढ़ाना शुरू कर दिया था. इक्कीस साल की उम्र में वो मद्रास प्रेसिडेन्सी कॉलेज में फ़िलॉसफ़ी विभाग में जूनियर लेक्चरर बन गए थे.

वो आंध्र प्रदेश यूनिवर्सिटी और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे और दस साल तक दिल्ली यूनिवर्सिचटी के चांसलर रहे. वो ब्रिटिश एकेडमी में चुने जाने वाले पहले भारतीय फ़ेलो बने और 1948 में यूनेस्को के चेयरमैन भी बनाए गए थे.

Report By :- ALISHA SINGH, EDUCATION DESK, NATION EXPRESS, RANCHI

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