महागठबंधन सरकार में अनबन : गठबंधन में दरार के दावों के बीच झारंखड कांग्रेस के 4 नेता दिल्ली तलब, CONGRESS विधायकों को निर्देश सीएम सोरेन से कुछ दिनों के लिए बना ले दूरी, अगर कांग्रेस जेएमएम से अपना समर्थन वापस ले लेती है तो बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे हेमंत सोरेन
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झारखंड में झामुमो और कांग्रेस के बीच खटपट की सुगबुगाहट… बढ़ सकती है तनातनी
झारखंड में जग जाहिर हो गया है की सरकार के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है इसी बीच जेएमएम और कांग्रेस के बीच खटपट की सुगबुगाहट पैदा हो गई है कांग्रेस आलाकमान ने चार मंत्रियों को अपने चार मंत्रियों को दिल्ली तलब किया है कॉन्ग्रेस अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा से अपना समर्थन वापस ले लेती है तो झारखंड में सरकार गिरना लगभग तय है लेकिन हेमंत सोरेन को कुर्सी का मोह इतना है कि अगर कांग्रेस समर्थन वापस ले लेती है तो सीएम की कुर्सी के लिए वह भारतीय जनता पार्टी के साथ झारखंड में सरकार बना लेंगे
राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में तेजी से हाशिये पर जा रही कांग्रेस के लिए झारखंड में आसार अच्छे नहीं दिखते। सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस नेताओं के मन में चल रही बातें इसी तरफ इशारे कर रही है।
झारखंड में भी गठबंधन सरकार के बीच दरार की खबरें सामने आ रही हैं। अब कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष समेत अपने कई नेताओं को 5 अप्रैल को दिल्ली तलब किया है। इस दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ जारी तनाव को लेकर बड़ी चर्चा हो सकती है। खबर है कि कांग्रेस नेता जेएमएम के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर पार्टी को नजरअंदाज करन के आरोप लगा रहे हैं।
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झारखंड कांग्रेस के नेताओं को 5 अप्रैल को दिल्ली बुलाया गया है। इनमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और राज्य सरकार में पार्टी कोटा के 4 मंत्रियों, सभी पूर्व अध्यक्षों और कुछ विंग के अध्यक्षों का नाम शामिल है। इस बात की जानकारी झारखंड कांग्रेस प्रमुख राजेश ठाकुर ने दी है। उन्होंने कहा कि मीटिंग पार्टी मुख्यालय में हो सकती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीएम सोरेन को कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और समन्वय समिति के गठन को लेकर सौंपे गए प्रस्ताव पर लंबे समय तक जवाब नहीं मिलने के बाद कांग्रेस ने यह फैसला किया है। खबर है कि सीएम को 7 मार्च को प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन करीब एक महीने के बाद भी उन्होंने जवाब नहीं दिया है।
एमएम ने कथित रूप से कांग्रेस को हेमंत सोरेन की सरकार से समर्थन वापस लेने की चुनौती दी है। इसके बाद नया तनाव खड़ा हुआ है। खबर है कि कांग्रेस महासचिव अविनाश पांडे ने पार्टी विधायकों को निर्देश दिए हैं कि वे सीएम सोरेन से अगले दो महीनों तक मुलाकात न करें।
झारखंड की सियासत का गणित समझें
81 सीटों वाले झारखंड में गठबंधन की सरकार में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के 47 विधायक हैं। इनमें जेएमएम के विधायकों की संख्या 30, कांग्रेस की 18 है। जबकि, राज्य में राजद का एक विधायक है। गठबंधन की सरकार में कांग्रेस के चार मंत्री शामिल हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब सोरेन को सहयोगी दल की तरफ से आलोचना का सामना करना पड़ा है। फरवरी में भी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बना गुप्ता ने आरोप लगाए थे कि कांग्रेस को दरकिनार किया जा रहा है।
क्या है इसका मायने-मतलब
कांग्रेस को इस बात का मलाल है कि गठबंधन सरकार ने उसे अहमियत नहीं मिलती। सरकार एकतरफा फैसले ले रही है। इसका घाटा भविष्य में उठाना पड़ सकता है, लिहाजा चिंतन शिविर के माध्यम से कांग्रेस ने अपने राजनीतिक दोस्त झारखंड मुक्ति मोर्चा को यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब रिश्ता एकतरफा नहीं चलेगा। यानी सत्ता से जुड़े विषयों और नीतिगत फैसलों में पार्टी की राय लेनी होगी। इससे पहले भी कांग्रेस के विधायक समय-समय पर अपनी पीड़ा से शीर्ष नेतृत्व को अवगत कराते रहे हैं। विधायकों के गुस्से का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र में जब सत्तारूढ़ दल के विधायकों की संयुक्त बैठक बुलाई गई तो कांग्रेस के विधायक नहीं पहुंचे। सारी तैयारी धरी रह गई है। इसका दोहराव भी हुआ। 25 फरवरी से आरंभ हो रहे बजट सत्र के पहले कांग्रेस विधायक दल ने अपनी अलग बैठक कर ली।
कांग्रेस के बिना बहुमत नहीं
गठबंधन सरकार में शामिल कांग्रेस के विधायकों की संख्या 18 है। इसमें झाविमो से आए दो विधायक भी शामिल हैं। हेमंत सरकार की स्थिरता के लिए यह आवश्यक है कि कांग्रेस का साथ बरकरार रहे। फिलहाल सरकार की स्थिरता को कोई संकट नहीं दिखता, लेकिन कांग्रेस के भीतर पैदा हुए असंतोष का फायदा भाजपा-आजसू गठबंधन उठा सकता है।
कांग्रेस नहीं चाहेगी, सत्ता की चाबी उसके हाथ से निकले
राष्ट्रीय राजनीति में पिछड़ने के कारण कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि झारखंड में सत्ता की चाबी उसके हाथ से निकले। इसके लिए आवश्यक है कि वह महत्वाकांक्षी नेताओं पर अंकुश लगाए और बड़े पैमाने पर दल के भीतर होने वाली गुटबाजी को भी समाप्त करे। चिंतन शिविर के अंतिम दिन कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी स्पष्ट संदेश दिया है कि कार्यकर्ता उनके लिए सबसे ऊपर हैं। हालांकि यह सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन धरातल पर उतारना टेढ़ी खीर है।
Report By :- DIPTI AGARWAL, POLITICAL DESK, NATION EXPRESS, RANCHI