किसान आंदोलन के नायक:सरकार का सिरदर्द बने किसान आंदोलन के 6 अहम किरदारों से मिलिए, कोई फौजी रहा तो कोई डॉक्टर
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करीब 15 दिन से किसान आंदोलन सबसे बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है। पंजाब और हरियाणा से आए किसानों ने दिल्ली बॉर्डर पर डेरा जमा रखा है। उनके लगातार मज़बूत होते आंदोलन के चलते नरेंद्र मोदी सरकार दबाव में नजर आ रही है। इसके पहले किसी आंदोलन ने सरकार के लिए इस स्तर की परेशानी खड़ी नहीं की थी।
दिलचस्प ये भी है कि इतना व्यापक आंदोलन खड़ा करने के पीछे जिन लोगों की अहम भूमिका रही है, उन्हें आज भी कम ही लोग जानते हैं। यहां हम किसान आंदोलन के इन्हीं चेहरों के बारे में बता रहे हैं।
गुरनाम सिंह चढूनी
हरियाणा में किसान आंदोलन को मजबूती से खड़ा करने के पीछे जो सबसे बड़ा नाम है वह गुरनाम सिंह चढूनी ही है। 60 साल के गुरनाम कुरुक्षेत्र के चढूनी गांव के रहने वाले हैं और भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष हैं। बीते दो दशकों से किसानों के मुद्दों पर लगातार सक्रिय रहने वाले चढूनी जीटी रोड क्षेत्र (कुरुक्षेत्र, कैथल, यमुना नगर, अंबाला) में चर्चित रहे हैं। हालांकि, 10 सितम्बर को पीपली में हुए किसानों पर लाठीचार्ज के बाद से उनका जिक्र काफी ज्यादा हो रहा है। इस घटना के विरोध में सारे प्रदेश में आंदोलन खड़ा करने की मुख्य भूमिका चढूनी ने ही निभाई।
चढूनी सियासत में भी हाथ आज़मा चुके हैं। वे पिछले साल बतौर निर्दलीय प्रत्याशी हरियाणा विधान सभा का चुनाव लड़ चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी पत्नी बलविंदर कौर भी आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी हैं।
डॉक्टर दर्शन पाल
डॉक्टर दर्शन पाल क्रांतिकारी किसान यूनियन से जुड़े हैं। यह संगठन वामपंथी विचारधारा का समर्थन करता है। पंजाब में इस संगठन का जनाधार बाकी किसान संगठनों की तुलना में काफी कम है। लेकिन, दर्शन पाल आज के किसान आंदोलन के सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं। एमबीबीएस-एमडी डॉक्टर दर्शन पाल कई साल तक सरकारी नौकरी कर चुके हैं। करीब 20 साल पहले नौकरी छोड़ी और तब से अब तक किसानों की आवाज उठा रहे हैं।
किसान संगठनों के बीच तालमेल बनाने में डॉक्टर दर्शन पाल ने अहम भूमिका निभाई। पटियाला के रहने वाले डॉक्टर दर्शन पाल मीडिया से बातचीत करने की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। वे किसान नेतृत्व के उन चेहरों में शामिल हैं जो क्षेत्रीय भाषाओं के साथ ही अंग्रेजी में भी किसानों की बात पूरी मज़बूती से मीडिया के सामने रखते हैं।
बलबीर सिंह राजेवाल
बलबीर सिंह राजेवाल इस आंदोलन का कितना प्रतिनिधित्व करते हैं उसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमित शाह उन्हें एक से ज्यादा बार फोन कर चुके हैं। 77 साल के बलबीर भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। उनकी औपचारिक पढ़ाई भले ही सिर्फ़ 12वीं कक्षा तक हुई है लेकिन उनका अध्ययन इतना अच्छा रहा है कि बीकेयू का संविधान भी उन्होंने ही लिखा है।
इस आंदोलन में किसानों को वैचारिकी धार देने और सरकार से बातचीत की न्यूनतम शर्तों को तय करने में बलबीर की मुख्य भूमिका रही। वे इस वक्त बीकेयू राजेवाल के अध्यक्ष भी हैं। ये संगठन पंजाब में किसानों के बड़े संगठनों में से एक है।
जोगिंदर सिंह उगराहां
भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) पंजाब के सबसे मज़बूत और सबसे बड़े किसान संगठनों में से एक है। जोगिंदर सिंह इसके अध्यक्ष हैं या यूं भी कह सकते हैं कि जोगिंदर ने ही यह संगठन तैयार किया। वे रिटायर्ड फौजी हैं। उनके प्रभाव के चलते ये संगठन तेजी से लोकप्रिय हुआ। महिला किसान भी संगठन से जुड़ने लगीं। दिल्ली पहुंचे किसानों में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा है जो जोगिंदर के नेतृत्व में यहां आए हैं।
जगमोहन सिंह
भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के बाद पंजाब में जिस किसान संगठन की सबसे मज़बूत पकड़ है, वह है भारतीय किसान यूनियन (डकौंदा)। जगमोहन सिंह इसी संगठन के नेता है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के बाद से ही जगमोहन सिंह पूरी तरह से सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित हो गए।
जगमोहन फिरोजपुर के रहने वाले हैं। उनका आधार पंजाब के अलावा देश के दूसरे हिस्सों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच भी है। तमाम प्रदेशों के लोगों को इस आंदोलन में शामिल करने और तीस से ज़्यादा किसान संगठनों को एकजुट रखने में वे अहम भूमिका निभा रहे हैं।
राकेश टिकैत
मौजूदा किसान आंदोलन को सिर्फ़ पंजाब और हरियाणा तक ही सीमित आंदोलन बताया जा रहा था। लेकिन इस धारणा को राकेश टिकैत ने खत्म किया। वे उत्तर प्रदेश से सैकड़ों किसानों को साथ लेकर इस आंदोलन में शामिल हो गए। राकेश टिकैत एक जमाने में किसानों के सबसे बड़े नेता रहे महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। आज वे इस आंदोलन के बड़े नामों में से एक हैं। माना जा रहा है कि सरकार से बातचीत और सुलह का रास्ता खोजने के प्रयासों में किसानों की तरफ से टिकैत ही सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
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