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मंजिलें भी जिद्दी हैं, रास्ते भी जिद्दी हैं, देखते हैं कल क्या हो, हौंसले भी जिद्दी हैं…’ अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इन शब्दों के साथ अमर उजाला सलाम करता है सभी महिलाओं को, उनके हौसले और उनके संकल्पों को, जिनके बूते उन्होंने अपनी पहचान तो बनाई साथ ही समाज को भी हर पल कुछ नया देने की कोशिश कर रही हैं। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व सामाजिक लाचारी को उन्होंने अपने रास्ते की बाधा बनने नहीं दिया। तय कर लिया और आगे बढ़ चलीं, रास्ते बनते गए और वे एक नया संसार रचती गईं। किसी ने खेल में तो किसी ने बिजनेस, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में खुद की पहचान बनाई। इनकी उड़ान भरती कोशिशों पर रोली खन्ना व सुधांशु सक्सेना की एक रिपोर्ट।
किसी ने हिजाब पहनकर संभाली पिस्टल तो किसी ने व्हीलचेयर को बना ली ताकत
हिजाब पहन संभाली पिस्टल, आलोचना झेल बनी शूटर
मेरा नाम शाजिया तमन्ना है। एक आम महिला की तरह मेरी भी 21 साल की उम्र में शादी हो गई। हमेशा मन में कुछ अलग करने की चाह थी, लेकिन सास-ससुर की सेवा और दो बच्चों की जिम्मेदारी में ऐसी उलझी कि दस साल कब गुजर गए पता ही नहीं चला। 30 वर्ष की उम्र में एक दिन पति से पिस्टल और राइफल शूटिंग में जाने की इच्छा जाहिर की। पति जमाल असगर ने सपोर्ट किया, लेकिन लोग पीठ पीछे मेरा मजाक उड़ाते थे। कई लोगों ने कहा कि ये पुरुष प्रधान समाज का क्षेत्र है और इसकी राह आसान नहीं है।
खूब आलोचना हुई लेकिन इनसे मैं डरी नहीं, इन आलोचनाओं को झेल कर लगातार तीन साल तक अपने पति से हीपिस्टल और राइफल चलाने की ट्रेनिंग ली। चूंकि मैं एक शिक्षिका भी थी तो सोमवार से शनिवार तक बिजी शेड्यूल रहता है, इसके बावजूद हर हफ्ते रविवार को घर के सारे कामकाज निपटा कर शूटिंग रेंज जाती और अपनी कोशिश जारी रखती। मुझे सलवार सूट और हिजाब में राइफल और पिस्टल चलाते जिसने भी देखा, उसने तारीफ बाद में की और आलोचना पहले की।
तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद धीरे-धीरे शूटिंग रेंज पर होने वाली प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करना शुरू किया। एयर राइफल से शुरू हुआ ये सफर धीरे-धीरे पिस्टल शूटिंग से होता हुआ ट्रैकशूटिंग की ओर बढ़ रहा है, जिसमें 7 से 8 किलो की भारी राइफल से शूटिंग की जाती है। मैं अब अवध राइफल क्लब के फीमेल विंग का प्रतिनिधित्व करती हूं और स्टेट लेवल कंपीटीशन की तैयारी कर रही हूं। मैं राइफल व पिस्टल शूटिंग के क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व करना चाहती हूं।
कोई भी क्षेत्र महिला या पुरुष प्रधान नहीं होता
मैं अपने जैसी घरेलू महिलाओं और बच्चियों को हमेशा सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग लेकर हर परिस्थिति से निपटने के लिए खुद को तैयार करने की सलाह देती हूं और हमेशा बच्चियों और महिलाओं को सिखाती हूं कि कोई भी क्षेत्र पुरुष या महिला का नहीं होता, किसी भी क्षेत्र में किसी का एकाधिकार नहीं है। अगर मन में संकल्प हो तो हर क्षेत्र में महिलाएं अपना परचम फहरा सकती हैं।
व्हीलचेयर कमजोरी नहीं मेरी ताकत है
मेरा नाम सुमन रावत है। तीन चार साल की थी, तब बुखारा आया और पैर में उतर गया। मैं चलने-फिर में असमर्थ हुई और विशेष बच्चों में गिनी जाने लगी। मेरा शिक्षा भी ऐसे ही स्कूल में हुई। कक्षा सात में थी तो किसी ने कैंप में जाने की सलाह दी, मेरा दुर्भाग्य था कि ठीक होने के बजाय और लाचार हो गई। जिस नस में इंजेक्शन लगाना था, डॉक्टर ने दूसरी नस में लगा दिया। मेरे पापा आज भी ठेला लगाते हैं, दूर पढ़ाई करने भेजना संभव नहीं था। पढ़ाई छूटी घर बैठ गई, पर मेरी लगन सच्ची थी, मुझे मदद मिल गई और पढ़ाई शुरू हो गई।
आज मैं बीएड कर रही हूं। स्कूल में मैंने खेल के बारे में बस यूं ही एक दिन शुरुआत हो गई, मैंने जेवलिन डिस्कस आउटपुट खेलना शुरू किया, साधन थे नहीं तो ईंटे से प्रैक्टिस करती थी। स्टेट लेवल तक सफलता मिली, मुझे बताया गया कि भाला फेंकने से मेरी रीढ़ की हड्डी पर असर आ सकता है, क्योंकि पैर में दिक्कत पहले से थी। वह खेल बंद कर दिया। यहां फिर मुझे मार्गदर्शन मिला और मैं बैडमिंटन की प्रैक्टिस करने लगी। बनारस खेलने गई थी, वहीं मुझे बताया गया कि व्हील चेयर पर बैठकर बैडमिंटन खेला जाता है। एक नई राह मिल गई। व्हीलचेयर पर दसों बार गिरी, फिर इतनी अभ्यस्त हो गई कि तीन बार नेशनल खेला और तीनों बार सिल्वर, ब्रांज और गोल्ड मेडल जीत चुकी हूं। 2020 में कोरोना के कारण सफर थमा है, जो फिर से शुरू होगा। सपना इंटरनेशनल खेलने का है, कोशिश जारी है।
शादी के 20 साल बाद, होम शेफ बन बनाई खुद की पहचान
मेरा नाम रितु जायसवाल है। हमारा संयुक्त परिवार है, पति हैं, एक बेटा 12वीं और दूसरा कक्षा 5वीं में पढ़ता है। इसके अलावा सास-ससुर और बाकी अन्य लोग हैं। शादी के बाद सारा फोकस परिवार और बच्चों की बेहतर परवरिश पर रहा। बच्चे बड़े हो गए, एक दिन बेटे को लेकर हॉबी कोर्स के लिए एक इंस्टीट्यूट गई थी, वहां से लौटी तो डिप्लोमा कोर्स के लिए अपना दाखिला कराकर। उस दिन मुझे भी खुद के बारे में पता चला यानी मैंने खुद से पूछा तो पता चला कि मैं कुछ करना चाहती थी। यह सब शादी के 20 साल बाद यानी 2017 की बात है। 2020 में मैंने एक छोटी सी कोशिश शुरू की होम शेफ के रूप में। अभी न मेरा आउटलेट है, न शो रूम है और न ही कोई ऑनलाइन स्टोर। मैं खुद को होम शेफ कहलाना पसंद करती हूं और घर से ही लोगों की पसंद की चीजें बना रही हूं। लोग ऑर्डर देते हैं, फीडबैक में पता चलता है कि मेरा बनाया केक, लोगों से अलग है। बस स्वाद की जंग जीत चुकी हूं। एक सपना है कि मेरी अपनी बेकरी हो।
क्यों जरूरी है अपनी पहचान
अक्सर आर्थिक तंगी हमें कुछ करने के लिए प्रेरित करती हैं, लेकिन मुझे खुद की तलाश ने एक नए रास्ते पर चलने की ताकत दी। कई बार हम जिम्मेदारियों में खुद को भूल जाते हैं। हम महिलाओं को अपनी पहचान खोने नहीं देनी है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: हिमाचल की इन बेटियों का देश-दुनिया में डंका, जानकर फख्र करेंगे
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आज धूमधाम से मनाया जा रहा है। देश-विदेश की तर्ज पर हिमाचल में भी सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कार्यक्रमों आयोजित किए जा रहे हैं। महिलाओं को समर्पित इस विश्वव्यापी उत्सव में आपका लोकप्रिय अखबार अमर उजाला भी इस विशेष आयोजन के साथ भागीदारी निभा रहा है। आइए जानें… उन महिलाओं को जिन्होंने खुद के दम पर अपनी राह चुनी और अपनी पहचान बनाकर देवभूमि को भी गौरवान्वित किया। समाज के लिए प्रेरणा पुंज बनीं इन महिलाओं के प्रति हम सब मिलकर सम्मान व कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
कंडक्टर की बेटी शालिनी बनी आईपीएस- ऊना जिले के ठठ्ल गांव के साधारण परिवार में पली बड़ीं शालिनी अग्निहोत्री प्रदेश की यूथ आइकन हैं। बस कंडक्टर की बेटी शालिनी ने कड़ी मेहनत से आईपीएस अधिकारी बनने का मुकाम हासिल किया है। वह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिले मंडी में पुलिस महकमे की कमान संभाल रही हैं। एसपी कुल्लू रहते हुए नशे के सौदागरों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई के चलते वह सुर्खियों में रहीं। कभी डीसी पद तक से अनभिज्ञ रहीं शालिनी आईपीएस प्रशिक्षण के दौरान सर्वश्रेष्ठ ट्रेनी का खिताब जीत चुकी हैं। वह विद्यार्थियों और युवाओं को भी अच्छे कॅरिअर के लिए प्रेरित कर रही हैं। युवाओं के लिए उनका संदेश है लक्ष्य को तय करके कड़ी मेहनत के साथ आगे बढ़ें।
Report By :- MADHURI SINGH / SADAF KHAN, NEWS DESK, NATION EXPRESS, NEW DELHI