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Raksha Bandhan आज : भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है ये अनोखा मंदिर, रक्षाबंधन पर लगता है मेला, हर बहन को रहता है इस मंदिर के खुलने का इंतज़ार

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SPECIAL DESK, NATION EXPRESS, सीवान (BIHAR)

सिर्फ रक्षाबंधन के दिन खुलता है बिहार का यह अनोखा मंदिर

एक अनोखा मंदिर जहां बहनें करती हैं भाइयों के लिए पूजा, मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति या तस्वीर

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पंडित राजा उपाध्याय बताते हैं कि वर्षों पूर्व एक भाई अपनी बहन को साथ लेकर उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा था. मुगल शासक के सिपाहियों का नियत खराब होने पर सिपाहियों ने डोली को रुकवा दिया. उस समय दोनों भाई-बहन डर गए और भाई को लगा कि अब बहन की इज्जत नहीं बचेगी. दोनों ने भगवान से प्रार्थना की. तभी जमीन दोनों समा गए. तब से पूजा-अर्चना का दौर जारी है.

भाई-बहन के बीच अटूट प्यार के लिए रक्षाबंधन का त्योहार विश्व में प्रसिद्ध है. ऐसे में सीवान जिला के भीखाबांध गांव में एक ऐसा मंदिर है, जिसे भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है. भैया-बहिनी मंदिर नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर में रक्षाबंधन के  दिन बहनें अपनी भाइयों की सलामती के लिए पूजा करने करने आती हैं. खास बात यह है कि भैया-बहिनी नामक इस मंदिर में न तो किसी भगवान की मूर्ति है और न कोई तस्वीर है. इस मंदिर के बीच में मिट्टी का एक ढेर सा है. इसी मिट्टी के पिंड और मंदिर के बाहर लगे बरगद के पेड़ की पूजा-अर्चना कर बहनें अपनी भाइयों की सलामती, उन्नति और लंबी उम्र की कामना करती हैं.

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इतिहासकार व शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह बताते हैं कि भाई-बहन के प्यार की यह कहानी सदियों पुरानी है. जब इस गांव के लोग इतिहास के पन्नों को पलटते हैं तो भाई-बहन की दास्तां और उनका प्रेम आंखों के सामने आ जाता है. उन्होंने बताया कि जिस जगह पर भाई-बहन ने धरती मईया की गोद में समाधि ली थी, वहां दो वट (बरगद) वृक्ष निकल आए. उनकी जड़ें कहां तक फैली है यह किसी को नहीं पता है. देखने में ऐसा लगता है जैसे दोनों एक-दूसरे की रक्षा करते हों. रक्षाबंधन के दिन यहां भाई- बहनों का जमावड़ा लगता है.

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सिपाहियों के घेरने पर भगवान का किया था आह्वान
पंडित राजा उपाध्याय बताते हैं कि वर्षों पूर्व देश में मुगल शासक हुआ करते थे. उस समय एक भाई अपनी बहन को साथ लेकर भभुआ (कैमूर) से उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा था. जब गांव के समीप बहन की डोली पहुंची तो मुगल शासकों के सिपाहियों ने देखा कि डोली में बहुत ही सुंदर औरत बैठी हुई है. महिला की सुंदरता देख उनकी नियत खराब होने लगी. सिपाहियों ने डोली को रुकवा दिया और देखा कि उस सुंदर महिला के साथ उसका भाई भी है. भाई ने सिपाहियों को बताया कि वह अपनी बहन को लेकर उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा है, लेकिन सिपाही बहन की डोली को रोककर रखे हुए थे और आगे जाने नहीं दे रहे थे. उस समय दोनों भाई-बहन काफी डर गए और भाई को लगा कि अब बहन की इज्जत नहीं बचेगी. ऐसे में दोनों ने भगवान से प्रार्थना की. तभी जमीन फटी और दोनों उसमें समा गए.

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बरगद के दो पेड़ को माना जाता है भाई-बहन
भाई-बहन के जमीन के अंदर समा जाने की बात पूरे गांव में फैल गई. जिसके बाद हिंदुओं ने वहां मन्दिर की नींव रखा. कुछ दिन बाद दो बरगद का पेड़ निकल आए. देखते हीं देखते पेड़ ने विशाल रूप ले लिया. तभी से यहां भाई-बहन की पूजा होती है. गांव का नाम भी उसी वक़्त भैया-बहिनीगांव रखा गया जो आज भी मौजूद है. कहा जाता है कि जहां भाई-बहन जमीन में समाहित हुए थे, वहीं से दोनों बट वृक्ष निकला था.

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रक्षाबंधन पर पेड़ को बांधी जाती है राखी
दिलीप कुमार ने बताया कि जब दोनों भाई-बहन की प्रार्थना से धरती फटी और वह उसमें दोनों समा गए तो कुछ दिन बाद वहां बरगद का पेड़ निकल आया. इसके बाद गांव वालों ने उसी जगह एक मन्दिर का निर्माण कराया और उसमें उन दोनों भाई-बहन की निशानी के तौर पर एक मिट्टी रख कर उसकी पूजा करने लगे. जिसके बाद उस मंदिर का नाम भैया- बहिनीरखा गया. इस निशानी को देखने आज भी लोग हजारों की संख्या में दूर-दराज से आते हैं. रक्षा बंधन के दिन यहां पेड़ में भी राखी बांधी जाती है और भाई-बहन की बनी स्मृति पर राखी चढ़ाने के बाद भाइयों की कलाई में बहनें राखी बांधती हैं. यह परंपरा अभी निभाया जा रहा है.

Report By :- SHIFA KHAN, SPECIAL DESK, NATION EXPRESS, सीवान (BIHAR)

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