NEWS DESK, NATION EXPRESS, NEW DELHI
प्रेम एक शब्द से अधिक भाव है। इसकी भाषा को हर कोई जानता है, यह प्रेम ही है जो हमें सभी से जोड़ता है। फिर वह मनुष्य हो या जीव-जंतु। यही प्रेम भाव जीवन को आत्मीय और जीने योग्य बनाता है। प्रेम के बिना तो सृष्टि की कल्पना भी संभव नहीं है। प्रेम पर कितनी ही लंबी-लंबी चर्चा और परिचर्चा क्यों न कर ली जाए? कितने ही बड़े-बड़े आश्वासन क्यों न दे दिए जाए? चांद-सितारों को तोड़कर लाने वाले ख्वाब ही क्यों न दिखा दिए जाए? अगर आपके भीतर प्रेम भाव नहीं है तो वह प्रेम नहीं है, महज एक शब्द है। जिसका अपना एक बड़ा बाजार है।
ये बाजार प्रेम बेचता है और इसके खरीदने वाले भी लाखों की संख्या में हैं। वहीं अपने समय में कबीर कहा करते थे ‘प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय/राजा परजा जेहि रुचै, शीश देयी ले जाय’।।यह प्रेम तत्व ऐसा है जो न कहीं उपजता है न ही बाजार में बिकता है। फिर भी कोई प्रेमी होना चाहता है तो शीश अर्थात अपना सर्वस्व देकर उस प्रेम को पा सकता है।
कबीर ने ऐसे व्यक्ति को ही सच्चे रूप में प्रेमी माना और उसी के हृदय में प्रेम के निवास होने की बात कही। वहीं आज का समय इसके ठीक विपरीत की स्थितियों का है। आज प्रेम, हृदय अर्थात भाव से अधिक शब्द है और बाजार का केंद्र बन गया है। व्यवहारिक स्तर पर भी प्रेम संबंधों में आत्मीयता से अधिक आवश्यकता शब्द हावी है। आज प्रेम संबंधों में प्रेम होने की मर्यादा सार्वजनिक रूप से प्रेम करने वालो द्वारा ही उघेड़ी जा रही है।
‘प्रेम’ शब्द आज शर्मिदा होकर अदालतों के चक्कर लगा रहा है क्योंकि प्रेम में दावा करने वालों ने ही कहीं प्रेम की हत्या कर दी तो कहीं आत्महत्या कर ली या आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया। प्रेम को लेकर फिल्मों ने जो नरेटिव तैयार किए वह भी आज तक टूट नहीं पाए है। आज भी पुरानी पीढ़ी हो या नई पीढ़ी उसी नरेटिव को जीना चाहती है। उसकी कल्पनाओं का प्यार सुखांत की अभिलाषा के साथ पूरा होता है जबकि व्यावहारिक स्तर पर प्रेम दु:खांत अधिक होता है।
आज के समय का हर व्यक्ति प्रेम करना चाहता है मगर उसके खतरों व परिस्थितियों से लड़ना नहीं चाहता है। तभी तो प्रतिदिन बनते हजारों प्रेम संबंधों में कुछ ही संबंध प्रेम को स्थायीत्व दे पाते हैं उसके महत्व और गरिमा को बनाए रख पाते हैं अन्यथा अधिकांश तलाक और कचहरी की लड़ाइयों में उलझकर दम तोड़ देते हैं और प्रेम फिर से भाव से शब्द बनकर रह जाता है, जैसा कि आज का बाजार।
फरवरी का यह माह वसंत के आगमन और प्रेम का माह माना जाता है…
बाजार के लिए हर व्यक्ति, भाव, वस्तु और विचार मूल्यवान है जिसका बाजार मूल्य है। बाजार व्यक्ति से लेकर उसके इमोशन तक को बेच देता है। आज भावनाओं की खरीद-फरोख्त का भी एक बाजार हमारे बीच सक्रिय है। यह बाजार प्रेम संबंधों में कहीं डेटिंग एप के रूप में काम कर रहा है तो कहीं कॉल सेंटर की दुनिया का अपरिचित होकर आपकी भावनाओं से खेल रहा है।
उपभोक्तावादी इस दौर में जब सब कुछ बेचा जा रहा है तो ऐसे में मानवीय संबंध, उनकी भावनाएं और प्रेम भी बाजार का हिस्सा बन गया है। आज प्रेम को परिभाषित करने वाला व्यक्ति और उसका अनुभव नहीं बल्कि बाजार है। इन दिनों बाजार में चारो ओर छाया लाल रंग प्रेम का नहीं बल्कि प्रेम में होने का दबाव है जो पूरी तरह बाजार से प्रभावित है।
फरवरी का यह माह वसंत के आगमन और प्रेम का माह माना जाता है। प्रकृति में वसंत प्रेम, मादकता, उल्लास, नव सृजन, और उमंग का द्योतक है। वसंत को प्रकृति का शृंगार भी कहा जाता है। यह वसंत प्रकृति से लेकर मनुष्य तक के भीतर में प्रेम, उल्लास और आत्मीयता का भाव पैदा करता है। यही माह युवाओं में वसंत से अधिक ‘वेलेंटाइन डे’ अर्थात प्रेम दिवस के इंतजार का भी होता है।
कहने को तो हर दिन प्रेम का होता है। हमारे यहां तो वसंत का आगमन ही जीवन में पुन: उलास, उमंग और प्रकृति से लेकर मनुष्य तक को प्रेममयी अपनी मादकता में समाहित कर लेना है। मगर आज न उस तरह का वसंत रहा न प्रेम। क्योंकि एक ओर मानवीय हस्तक्षेप के कारण प्रकृति निरंतर बदलाव के कारण कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो रही है।
आत्मीयता, मानवता, प्रेम, सहचर्य, समभाव जैसे शब्दों से अधिक उसके भावों को जोड़ने वाली प्रकृति विलुप्त होने की कगार पर है। दूसरी ओर प्रेम, प्रेम में होने के कारण अदालतों के चक्कर काटता हुआ अंत में एक बेजान शब्द बनकर हमारे जीवन में घूम रहा है। अब तो वसंत और प्रेम के आगमन की सूचना या तो कलैंडर बताता है या वेलेटाइन के आगमन में सजा बाजार।
Report By :- BHAVNA SINGH, NEWS DESK, NATION EXPRESS, NEW DELHI