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रिया चक्रवर्ती को क्यों बनाया जा रहा है विलेन ?

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Aaliya Alisha, NATION EXPRESS DESK, MUMBAI:- अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत (SUSHANT SINGH RAJPUT) और रिया चक्रवर्ती (RIYA CHAKARVARTI) की जिंदगी एक टेलीविजन धारावाहिक की तरह आज कल न्यूज चैनल्स पर दिखाई जा रही है। कभी ये छल-कपट और काले जादू के साथ मर्द को अपने वश में करने वाली औरत की कहानी बन जाती है, तो कभी एक मजबूत, बलवान, खुश-मिजाज मर्द को अवसाद-ग्रस्त कमजोर शख्स बनाकर दिखानेवाली औरत की। कहानी में नित नए मोड़ आते हैं, अहम भूमिका जताने वाले किरदार आते हैं और राय शुमारी ऐसे की जाती है, मानो वही गहन सत्य हो। पर कहानी रहती है मर्द और औरत के रिश्ते की। जिसमें मर्द हीरो है और औरत विलेन। वो भी बिना जांच के। कम से कम अब तक का प्लॉट तो यही रहा है।

14 जून को सुशांत सिंह राजपूत को उनके फ्लैट में मृत पाए जाने के बाद, एक लंबे समय तक इसकी वजह बॉलीवुड का भाई-भतीजावाद बताया गया। फिल्म इंडस्ट्री से सवाल पूछे गए, टीवी स्टूडियो में बहस छिड़ी।
पर फिर शक की सुई उनकी गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती की तरफ मुड़ गई। उन्हें पैसे की लालची बता कर बलात्कार और हत्या की धमकिया दी जानें लगीं। तंग आकर उन्होंने मुंबई पुलिस के साइबर सेल में शिकायत भी की।

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हावी होनेवाली औरतें
पर इन अफवाहों पर एक तरह से तब मुहर लग गई, जब सुशांत सिंह राजपूत के पिता ने रिया चक्रवर्ती पर अपने बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाने, पैसे हड़पने और घरवालों से दूर रखने के इल्जाम के साथ बिहार पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई। इल्जाम, जो पुलिस की तहकीकात और अदालत की सुनवाई के दौरान परखे जाते हैं और उससे पहले उन्हें आरोप ही मानना सही है।
पर ऐसा नहीं हुआ। बिहार में जनता दल यूनाइटेड के नेता महेश्वर हजारी ने रिया चक्रवर्ती को विष-कन्या बताया, “उन्हें एक सोची-समझी साजिश के तहत भेजा गया, सुशांत को प्यार के जाल में फंसाने के लिए, और उन्होंने उनका क्या हाल किया हम सब जानते हैं।”
ऐसे बयानों के बाद रिया ही नहीं बंगाल की औरतों पर सोशल मीडिया पर खूब छींटाकशी हुई। अंग्रेजी बोलने वालीं, शादी के बाहर यौन संबंध रखने से ना हिचकने वालीं, अपने मन की बात खुल कर बोलनेवाली वो बंगाली औरतें जो उत्तर भारत के मर्दों को बिगाड़ देती हैं।

कई ट्वीट लिखे गए, जैसे “बंगाली लड़कियां हावी हो जाती हैं, उन्हें पता है लड़कों को कैसे फंसाया जाए”, “पहले वो काला जादू से बड़ी मछली पकड़ती हैं फिर वो ही उनके सारे काम करती है”.
यहां तक कि कोलकाता पुलिस में शिकायतें दर्ज होने की रिपोर्ट भी आई। पर बंगाली और बाकी औरतों ने मिल कर इन धारणाओं का सोशल मीडिया पर ही जवाब दिया। ट्विटर पर रुचिका शर्मा ने लिखा कि औरतों को वहशी दिखाना भारत में वक्त काटने का एक लोकप्रिय तरीका है और इस सोच को दशकों का नारीवादी आंदोलन नहीं बदल पाया है, क्योंकि उसकी शुरुआत घर से, मर्दों के साथ हमारे रिश्ते से शुरू होने की जरूरत है।

अभिनेत्री स्वास्तिका मुखर्जी ने लिखा, “हां, मैं रूई और भेटकी पसंद करती हूं, फिर उसे सरसों के तेल में फ्राय कर, गरम चावल और लाल या हरी मिर्च के साथ खाती हूं। बंगाली औरतों, कोई मेरे साथ जुड़ना चाहेगा?”

बेबस मर्द
तंत्र-मंत्र और काला जादू से सुशांत सिंह राजपूत को वश में करने का दावा, एक समझदार मर्द जो बेबस हो गया, झांसे में आ गया। ये उसी सुशांत सिंह राजपूत के लिए कहा जा रहा था, जिन्होंने पिछले साल जलालुद्दीन रूमी का लिखा, “जैसे एक परछाई, जो मैं हूं भी और नहीं भी”, ट्वीट किया था। बेबसी की ये बात सुशांत सिंह राजपूत के अवसाद का रोगी होने के दावे से जुड़ी थी। वो अलग बात है कि इस दावे पर भी खूब सवाल किए गए। तस्वीरों में दुखी दिखने की निशानदेही खोजी गई।
फिल्म विश्लेषक ऐना वेट्टीकाड ने पूछा, “अवसाद की ‘लुक’ का क्या मतलब होता है? मानसिक रोग से जुड़े लोग सुशांत सिंह राजपूत के मामले की टेलीविजन कवरेज में फैलाई जा रही गलत जानकारी के खिलाफ क्यों नहीं बोलते?”
मानसिक बीमारी यानी कोई विफलता, एक निजी हार। और मर्द को कमजोर मानना समाज के लिए वैसे ही मुश्किल है। वो भी एक ऐसा मर्द जो छोटे और बड़े पर्दे पर ‘हीरो’ की भूमिका में रहा है, जिसने बॉलीवुड के बाहर से होने के बावजूद उसमें अपना मकाम बनाया है, वो निर्बल कैसे हो सकता है।
अवसाद जैसी बीमारी हमारे हीरो को होना असहज था और अगर उन्हें ये बीमारी थी तो इसका भी गलत फायदा उठाया गया होगा। ये उनकी गलती नहीं, उसके साथ धोखा करनेवाली की ही होगी। चर्चा में फिर सूंई रिया चक्रवर्ती की ओर घूम गई।

औरत के कपड़े
रिया ने एक वीडियो जारी कर न्यायपालिका में विश्वास जताया और मीडिया में उनके खिलाफ की जा रही बातों को गलत बताया। पर सफेद सलवार-कमीज में जारी किया गया ये वीडियो उनके बयान नहीं, बल्कि कपड़ों की वजह से सुर्खियों में रहा। सुशांत सिंह राजपूत के परिवार के वकील ने कहा, “रिया का वीडियो उनके बयान नहीं, उनके कपड़ों के बारे में है, मुझे नहीं लगता उन्होंने जिंदगी में कभी ऐसे कपड़े पहने होंगे, उनका मकसद बस खुद को एक सीधी-सादी औरत जैसा पेश करना था।”


इसे वरिष्ठ वकील करुणा नंदी ने ‘लीगल मिसॉजनी’ यानी कानून के दायरे में औरतों को नीचा देखना, करार दिया। उन्होंने लिखा, “कम कपड़े मतलब अपराधी, सलवार-कमीज़ मतलब अपराध छिपाने की कोशिश”।
मीडिया में फैलाए जा रहे मानसिक रोग से जुड़े मिथकों को दूर करने के लिए सुशांत सिंह राजपूत की थेरेपिस्ट ने बयान दिया। उन्होंने कहा अवसाद को मानसिक बीमारी की जगह व्यक्तित्व की कमजोरी मानना गलत है। ये भी दावा किया कि सुशांत सिंह राजपूत को ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’ था और रिया ने उन्हें इसे छिपाने की जगह मदद मांगने की हिम्मत दी।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत खुदकुशी से हुई या उनकी हत्या की गई? और अगर इसके पीछे कोई साजिश थी तो वो किसने रची और किस मकसद से? इन सवालों के जवाब ढूंढने की राह में राजनीति भी है, निजी स्वार्थ भी और इस सबके बीच में कहीं दबी सच्चाई। न्यायपालिका और जांच एजंसियों का इंतजार करे बगैर स्टिंग ऑपरेशन, मीडिया की अपनी पड़ताल और अपराध तय करने की जल्दबाजी घातक हो सकती है। दबाव और खुदकुशी के जिस रिश्ते से बात शुरू हुई थी, विलेन ढूंढने की होड़ में कहीं वही माहौल ना बन जाए। निर्देशक हंसल मेहता ने शायद इसीलिए ट्विटर पर सवाल पूछा, कि अगर मीडिया ट्रायल की वजह से ऐसा हुआ तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?

Report By :- Aaliya Alisha, NATION EXPRESS DESK, MUMBAI

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