POLITICAL DESK, NATION EXPRESS, RANCHI
Jharkhand Assembly Elections: झारखंड विधानसभा चुनाव में 28 सीटें अनुसूचित जनजाति या आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, जबकि नौ सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. पिछली बार इंडिया ब्लॉक ने इसमें से 26 सीटें जीती थीं. इस बार भी जो पार्टी इनमें से सबसे ज्यादा सीटें जीतेगी उसकी किस्मत का ताला खुल सकता है.
झारखंड अपने पांचवें विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है. इसके लिए दो चरणों में 13 और 20 नवंबर को मतदान होगा. जिसके परिणाम तीन दिन बाद घोषित किए जाएंगे. यह झारखंड के 24 साल के इतिहास में पांचवां विधानसभा चुनाव होगा. इस दौरान 13 अलग-अलग मौकों पर सात व्यक्ति मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं. इसके अलावा राज्य ने राष्ट्रपति शासन के तीन दौर भी देखे हैं. बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास अपना कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र व्यक्ति हैं. 2005 की विधानसभा में पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बने थे. कोई भी पार्टी लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए दोबारा नहीं चुनी गई है.
झारखंड विधानसभा में 82 सीटें हैं, जिसमें 81 के लिए चुनाव होता है जबकि एक सदस्य मनोनीत किया जाता है. 81 में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति या आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, जबकि नौ सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. 44 सीटों पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं. इस राज्य में सत्ता की चाभी अनुसूचित जनजाति अरक्षित सीटों के पास होगी. यानी जो पार्टी इन 28 सीटों में से सबसे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होगी. अगले पांच साल तक सरकार चलाने का मैंडेट उसी को मिलेगा.
2019 में झामुमो को मिला था साथ
2019 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति या आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को जबरदस्त साथ मिला था. इन 28 सें से 26 सीटें यूपीए यानी इंडिया ब्लॉक के पास हैं. 19 एसटी सीटों पर झामुमो का कब्जा है जबकि आइएनडीआइए गठबंधन को मिला दें तो कुल सीटें 26 हैं. जबकि केवल दो सीटों पर भाजपा को सफलता मिली थी. यही कारण है कि 2019 में 20 सीटें जीतने वाली झामुमो छलांग लगाकर सीधे 30 के आंकड़े तक पहुंच गई. इस लंबी छलांग लगाने में झामुमो को आदिवासियों के अलावा क्रिश्चियन, मुसलमान और महतो वोटर का भी तगड़ा समर्थन मिला था. जबकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सबसे अधिक नुकसान एसटी सीटों पर ही हुआ था.
कौन सी हैं ये सीटें
अनुसूचित जनजाति के लिए बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा, घाटशिला, पोटका, सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसावां, तमाड़, तोरपा, खूंटी, खिजरी, मांडर, सिसई, गुमला, विशुनपुर, सिमडेगा, लोहरदगा, मनिका और कोलेविरा सीटें आरक्षित हैं. छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत और आदिवासी सीटों पर बढ़त के बाद बीजेपी को अब झारखंड के आदिवासी मतदाताओं से भी उम्मीदें हैं. ऐसे में यहां एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों नए सिरे से राजनीतिक समीकरणों को साध रहे हैं.
झारखंड के बारे में इस हकीकत से सभी पार्टियां वाकिफ हैं कि वे गठबंधन में रहने पर बेहतर प्रदर्शन करती हैं., झामुमो और कांग्रेस 2014 में अलग-अलग लड़े तो केवल 25 सीटें जीत सके, लेकिन 2019 में जब वे एक साथ लड़े तो उनकी सीटों की संख्या बढ़कर 47 हो गई. इसी तरह, भाजपा 2019 में गठबंधन सहयोगी के बिना लड़ीं तो केवल 25 सीटें हासिल कर सकी. जबकि 2014 में आजसू के साथ गठबंधन में लड़ते हुए उन्हें 42 सीटें मिलीं थी. जेडी (यू) और एलजेपी, जो अब झारखंड में एनडीए का हिस्सा हैं, ने भी अच्छा प्रदर्शन किया था. 2019 में बदतर स्थिति यह रही कि जिन सीटों पर उन्होंने चुनाव लड़ा, वहां उनकी जमानत जब्त हो गई और उन्हें केवल दो प्रतिशत वोट शेयर मिले। इसलिए दोनों गठबंधनों को चुनाव में सफल होना है तो उन्हें एकजुट होकर काम करना होगा.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी रही भारी
इस बार झारखंड में एनडीए का तालमेल इंडिया ब्लॉक से बेहतर नजर आ रहा है. वैसे भी झारखंड लंबे समय तक बीजेपी का गढ़ रहा है. भगवा पार्टी ने इस राज्य के बनने के बाद के 24 सालों में से 13 साल तक राज्य पर शासन किया है. इस साल की शुरुआत में लोकसभा चुनाव में उसके दबदबे की पुष्टि हुई, जब एनडीए ने राज्य की 14 संसदीय सीटों में से नौ पर जीत हासिल की. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी ने कहा, “हमने 51 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाए रखी है. अब हमारा काम विधानसभा में और भी बड़ा बहुमत हासिल करना है.”
आदिवासी वोटों में आई कमी
अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 28 निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी पार्टी कमजोर पड़ी है. इन सीटों पर मतदाताओं का 28 प्रतिशत हिस्सा है. बीजेपी 2019 के बाद से आदिवासी बेल्ट में अपने वोटों में लगातार कमी देख रही है. उस समय उसने एसटी के लिए आरक्षित 28 सीटों में से सिर्फ दो सीटें जीतीं थी. यह रुझान 2024 के आम चुनाव में भी जारी रहा. पांच महीने पहले जब सोरेन की गिरफ्तारी के बाद जब भाजपा एसटी के लिए आरक्षित सभी पांच लोकसभा सीटें हार गई.
झामुमो की मजबूत पकड़
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसके विपरीत, झामुमो की पारंपरिक रूप से राज्य के आदिवासी मतदाताओं पर मजबूत पकड़ रही है. हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन झारखंड में सबसे बड़े आदिवासी नेता रहे हैं. हेमंत ने सरकारी नौकरी की पात्रता के लिए 1932 के भूमि रिकॉर्ड के आधार पर अधिवास नीति की वकालत और सरना धर्म की मान्यता पर जोर देकर इस विरासत को आगे बढ़ाया है, जो प्रकृति-पूजक आदिवासियों के लिए एक अलग पहचान चाहता है. इन कदमों ने आदिवासी समूहों को व्यापक हिंदू पहचान के तहत शामिल करने की भाजपा की योजना को पटरी से उतार दिया है.
23 नवंबर को आने वाले परिणाम ही बताएंगे कि आखिर आदिवासी मतदाताओं के दिल में क्या है? क्या हेमंत सोरेन दोबारा सरकार न बना पाने का मिथक तोड़ पाएंगे या राज्य में सत्ता बदलने का खेल इस बार भी जारी रहेगा.