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इबादत, तिलावत, सखावत और गुनाहों से तौबा की रात बंदों पर बरसती है अल्लाह की रहमत, आज है शब-ए-बारात

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इस्लामिक कैलेंडर के आठवें महीने को शबान कहते हैं और शबान महीने की 15वीं तारीख को शब-ए-बारात के नाम से जाना जाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लिए इबादत और फजीलत की रात होती है। इस दिन सारी रात मस्जिदों में इबादत करते हैं और अपने-अपने बुजुर्गों के लिए फातिहा पढ़ते हैं। भारत में एक तरफ होली का त्योहार मनाया गया तो दूसरी तरफ इबादत का दौर भी चला। शब-ए-बारात दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें शब का अर्थ है रात और बरआता का बरी होना। कहा जाता है कि शब-ए-बारात पाक रात होती है इसलिए इस दिन अल्लाह की रहमत बरसती है।

Women Workers Empowerment - Muslims offer Eid Al Fitr prayers at the  Badshahi Mosque in Lahore. [Image Credit: AFP/Gulf News] | Facebookपाक रात मानी जाती है शब-ए-बारात

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मुस्लिम समुदाय के बीच शब-ए-बारात वह रात मानी जाती है, जब अल्लाह ताला की अपनी बंदों की तरफ खास तवज्जो होती है। इस पाक रात में अल्लाह के बंदों के पास यह मौका होता है, वह अपने गुनाहों की माफी मांग ले। साथ ही अल्लाह से जो दुनिया से गुजर गए हैं, उनके लिए दुआ करते हैं। शब-ए-बारात की रात को अल्लाह दुआ और माफी दोनों मंजूर कर लेते हैं और पाक कर देते हैं। यही वजह कि इस रात को लोग रात-रात भर जागकर इबादत करते हैं और दुआएं मांगते हैं और फातिहा पढ़ते हैं।Photos: Ramadan around the world | CNNगुनाहों की मिलती है माफी
शब-ए-बारात की रात मुस्लिम समुदाय अपनों की कब्र पर जाते हैं और उनके हक में दुआएं मांगते हैं और महिलाएं घरों में ही नमाज पढ़ती हैं। अल्लाह इस रात हर किसी की इबादत को स्वीकार करते हैं और उन्हें उनके गुनाहों की माफी भी देते हैं। इस्लाम में इसे चार मुकद्दस रातों में से एक माना गया है, जिसमें पहली है आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र होती है। इस रात के चार अहम में पहला नमाज, दूसरा तिलावत-ए-कुरान, तीसरा कब्रिस्तान की जियारत और चौथी हैसियत के मुताबिक खैरात करना है।

Explained: What is Eid al-Fitr? Meaning behind the end of Ramadan 2022 -  World Newsइन दो लोगों को नहीं मिलती माफी
शब-ए-बारात की रात केवल दो लोगों के गुनाहों की माफी नहीं मिलती। पहली उनको जो दूसरों से दुश्मनी रखते हैं और दूसरी जिन्होंने किसी का जीवन छीन लिया हो। हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया, ‘पंद्रहवीं शबान की रात में अल्लाह अपने बंदों की मगफिरत (गुनाहों की माफी) फरमाते हैं सिवाय दो तरह के लोगों के।’ बताया जाता है कि शब-ए-बारात से रूहानी साल शुरू हो जाता है और अल्लाह इस रात फरिश्तों को जिम्मेदारियां सौंपता है कि किसे क्या मिलेगा, किसके लिए कैसा साल रहेगा और किसकी जिंदगी में उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा।

Happy Eid al-Fitr 2020! How the end of Ramadan is celebrated by Muslims -  World News - Mirror Onlineशब-ए-बारात के दिन रोजा रखते हैं कुछ लोग
मुस्लिम समुदाय में से कुछ लोग शब-ए-बारात के दिन रोजा भी रखते हैं। इसके पीछे वह मानते हैं कि रोजा रखने से पिछली शब-ए-बारात से लेकर इस शब-ए-बारात तक गुनाहों की माफी मिल जाती है। लेकिन उलेमाओं में इसे लेकर अलग-अलग राय है। कुछ उलेमा मानते हैं कि इस दिन रोजा रखने से बहुत ही सवाब यानी पुण्य मिलता है लेकिन कुछ मानते हैं कि इस दिन रोजा रखना जरूरी नहीं है। चूंकि शाबान के महीने के बाद रमजान का महीना शुरू हो जाता है और उसमें पूरे महीने रोजा रखना जरूरी होता है।

दारुल उलूम देवबंद ने कहा- शब-ए-बरात पर आतिशबाजी, जुलूस, सजावट गुनाह
विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद ने शब-ए-बरात पर आतिशबाजी और घरों व मस्जिदों को लाइट से सजाने, जुलूस निकालने और सड़कों पर निकल कर जश्न मनाने को गुनाह और गैरशरीयत करार दिया है। संस्थान ने कहा है कि शब-ए-बरात खुदा की इबादत की रात है। इस रात मुसलमानों को अपने घर पर रहकर ही खुदा की इबादत करनी चाहिए। कोई ऐसा काम नहीं नहीं किया जाना चाहिए, जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचती हो। इस्लाम में कहा गया कि ऐसा काम करना चाहिए, जिससे खुद और दूसरे लोग भी महफूज रहे। दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने कहा कि शब-ए-बरात के मौके पर आतिशबाजी, शोर शराबा करने के साथ ही सड़कों पर घूमने से बचना चाहिए। इस मुबारक रात में जागकर इबादत करनी चाहिए और अल्लाह पाक से अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए। दारुल उलम वक्फ के वरिष्ठ उस्ताद मुफ्ती आरिफ कासमी ने बताया इस रात का मकसद खुदा की इबादत करने से है। जो लोग इस रात में आतिशबाजी करते हैं या बाइक आदि पर सवार होकर सड़कों पर घूमते हैं, वह गैर इस्लामी काम करते हैं। यह न केवल नाजायज है, बल्कि हराम भी है। धर्म के नाम जो आडंबर किए जा रहे हैं, वह बेहद ही गलत है। शब-ए-बरात की रात केवल और केवल इबादत की रात है।

Qur'an | Description, Meaning, History, & Facts | Britannica
मुकद्दस रात का उठाएं फायदा
जामा मस्जिद प्रबंधक मौलवी फरीद ने हदीस-ए-पाक का हवाला देते हुए कहा कि इस रात में ज्यादा से ज्यादा इबादत करनी चाहिए। कुरआन पाक में इस रात में कब्रिस्तान जाकर फातिहा पढ़ने का भी जिक्र आया है। मुसलमानों को चाहिए कि अल्लाह पाक की ओर से इनाम में मिली इस मुकद्दस रात का भरपूर फायदा उठाएं और कोई भी गैर शरई काम न करें। खासतौर पर आतिशबाजी और सड़कों पर हुल्लड़बाजी बिल्कुल न करें।Muslims view the Quran as purely divine - Deseret Newsजहन्नुम से रिहाई की रात
नायब शहरकाजी नदीम अख्तर बताते हैं कि शब-ए-बरात यानी जहन्नुम से रिहाई की रात है। नबी करीम हजरत मोहम्मद मुस्तफा (सल्लाहू आलेही वसल्लम) ने अल्लाह से कहा, ‘पहले की उम्मतों की उम्र हजारों साल होती थी। मेरी उम्मत की उम्र कम है। इसलिए हम लोग अपने गुनाहों की तौबा कैसे करेंगे? इस पर अल्लाह ने फरमाया, ‘तुम्हारे उम्मत की उम्र कम होगी, लेकिन मैं उन्हें ऐसी रात अता करुंगा, जो हजारों रातों की इबादतों के बराबर वाली होगी।’ नदीम अख्तर ने कहा कि शब-ए-बरात अपने गुनाहों और जहन्नुम की रिहाई वाली रात है। शब-ए-बरात में इबादत कर अपने गुनाहों की तौबा करें।

Report By :- KHUSHBOO SHARMA, CITY DESK, NATION EXPRESS, RANCHI 

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